डॉ. हनुमान के नाम से ख्यातिलब्ध ''गोपी वेश धारी ''श्री हनुमान जी की प्रस्तर मूर्ति यहाँ लोगों के दर्द के हरण के लिए जानी जाती है !
लाखो श्रद्धालु यहाँ अपने शारीरिक व मानसिक ब्याधियों से निजात पाने के लिए आते है और श्री हनुमान जी की शूछम किन्तु दिब्य कृपा से रोग मुक्त हो जाते है !
''नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा'' इसी अवधारणा को साकार करते श्री हनुमान जी यहाँ छोटे से गांव ''दंदरौआ'' में लोगों के आस्था के केंद्र बिंदु बने है !
दंदरौआ ग्राम जिला भिंड, तहसील मेंहगांव के ग्राम धमूरी और चिरोल के मध्य स्थित है ! ये चारो ओर से सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है ! भिंड शहर से जाने वाले श्रद्धालु में गांव से पूरब की ओर घूम कर मऊ मार्ग से दंदरौआ धाम पहुंचते है ! ग्वालियर शहर से जानेवाले श्रद्धालु ग्वालियर भिंड मार्ग से गोहद अथवा मेंहगांव से पूर्व दिशा के सड़क मार्ग से अथवा ग्वालियर से बड़ा गांव के रास्ते अथवा ग्वालियर डबरा-मौ मार्ग से ६५ -७० किलोमीटर की यात्रा तय कर के श्री डॉ हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम पहुंच सकते है !
यह धाम ब्रह्मलीन गुरुबाबा श्री श्री १०८ बाबा लछमन दस जी महराज के शिस्य ब्रह्मलीन महंत बाबा पुरुषोत्तमदास जी महराज की साधना स्थली है और वर्तमान में उनके शिष्य श्री श्री १००८ महामंडलेश्वर संत रामदास जी महाराज की महंती में है ! हमारी धर्म संस्कृति में ''मन्त्र '' विज्ञानं का महत्त्व पौराणिक ग्रंथों में देखने को मिलता है !गोस्वामी तुलशीदास जी ने अपनी बात ब्याधि से मुक्ति के लिए ''श्री हनुमनबाहुक ''की रचना की थी और वे बात ब्याधि से मुक्त हो गए थे ! श्री दंदरौआ हनुमान जी का ये मन्त्र -''ओम श्री दंदरौआ हनुमंते नमः ''भी ब्याधियों के निवारण में संजीवनी सामान है जिसका शाब्दिक विश्लेसण इस प्रकार है ----ओम --आयं,-सतोगुण -रजोगुण -तमोगुण सक्तियों में संतुलन का कार्य करता है !इसमे ब्रह्मा -विष्णु -महेश त्रिदेव शक्ति समाहित है ,जो वात -पित्त -कफ को संतुलित करने की छमता रखता है ! श्री --ये माँ लक्ष्मी है ,जिनकी कृपा से सुख समृद्धि व वैभव प्राप्त होता है ! ''दं''--ये दर्द का निवारण और अपने ईस्ट के समछ दया का भाव प्रकट करता है ! ''द '' --दान की प्रेरणा देता है ,जो धर्म और मोछ का मार्ग प्रसस्थ करता है ! ''रौ ''--संताप ,रोग ,पीड़ा ब्याधित ब्यक्तियों की प्रसन्नता का कारक है! और ''आ ''--आने वाला पीड़ित प्रसन्न हो वपाश जाता है ! यैसे हमारे '' डॉ हनुमान'' जातकों की पीड़ा का सदैव हरण करते रहे !
भारतवर्ष में स्थानो, ग्रामों के नाम किसी न किसी ऐतिहाषिक, पौराणिक, या छेत्रीय घटनावों के आधार पर रखने की परम्परा रही है! इस छेत्र में अनेक स्थानो के नाम भी इसी आधार पर रखे गए है! जो अपभृंष हो चुके है! जैसे भगवान कृष्ण की गौएँ चराने की जहाँ तक हद (सीमा )थी उसे अब गोहद कहा जाता है! पांडवो को जन्म देने वाली कुंती के जन्म स्थान को कुंतल पुर कहा जाता था जो अब अपभृंश हो कुतवार कहा जाता है! शोडित पुर को शिहोनिया के नाम से पुकारा जाता है! महिष्मति का अपभृंश हो अब'' मौ '' कहा जाता है! इसी प्रकार द्वन्द -रउआ का अपभ्रंश ""दंदरौआ "" हो गया है!
यहाँ के डॉ हनुमान जी का अर्चाविग्रह ५०० वर्ष पुराना है !ये इस छेत्र के मुख्य देवता है! स्थानीय लोग चिकित्सीय सुविधाओं के आभाव में आस्था और विश्वास के सहारे इनके दरबार में जाते थे! श्री हनुमान जी के दिब्य प्रभाव से वे अपनी आधि -ब्याधि, दुःख -दर्द, मानसिक व शारीरिक पीड़ा से निजात पाते रहे है! इस लिए ही यहां विराजे हनुमान जी फोड़ा, फुन्शी, अनेक चर्म रोगो सहित सभी शारीरिक ब्याधियों से निजात दिलाने वाले देवता के रूप में प्रशिद्ध हुए और उन्हें द्वन्द -रउआ अर्थात दर्द के निवारण करने वाले के रूप में नाम मिला ! जब उनके इस प्रताप से इनके आसपास लोगो ने अपना निवासः बनाया तो उस ग्राम का नाम द्वंदरौआ रखा जो कालांतर में अपभृंश हो ''दंदरौआ '' के नाम से जाना जाता है! हिंदी भाषी ग्रामीण लोग आज भी द्वन्द को'' दंद'' और दर्द को'' दद्द'' बोलते है !
दंदरौआ सब्द जो द्वन्द -रउआ का अपभ्रंश है, रीयते छीयते इति र 'इस ब्याकरण ब्युत्पत्ति के अनुसार रीढ़ छ्ये धातु से अप प्रत्यय हो कर ''र '' सब्द बनता है, जिसका अर्थ है नस्ट होने वाला! ''द्वन्द छीयते यत्र सः'' अथवा ''दर्द छीयते यत्र सः '' दर्दराः एतदृशः ''! द्वन्दरः अथवा दरदर का अर्थ भी द्वन्द अथवा दर्द को छीन करने वाला है! इस प्रकार निश्चित है की यहाँ स्थित श्री हनुमान जी ग्राम स्थापित काल के पूर्व से ही आधि, ब्याधि, रोगों का निवारण करते रहे है! ऐसे डॉ हनुमान सदैव जातकों के दुःख, दर्दों का निवारण करते रहे!