महामण्डलेस्वर संत रामदास जी महराज ''महंत'' हनुमान मन्दिर दंदरौआ धाम ''

आप का जन्म ग्राम मडरोली जिला भिंड में चचोरे सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था ! आप के बचपन का नाम '' रामनरेश ''था ! आप बचपन से ही सरल, सांतनिष्ठ, भगवान के प्रति प्रेम रखने वाले थे ! जब आप ने कच्छा ८ पास कर ली तो तब श्री हनुमान मंदिर के पुजारी जीवनलाल जी से ज्योतिस ज्ञान प्राप्त करने के लिए दंदरौआ आश्रम जाने लगे !तभी महंत बाबा श्री श्री १०८ श्री पुरुसोत्तमदाश जी महराज की दृस्टि इन पर पड़ी ! उन्होंने इनमे संत के गुणों को महसूस किया ! महंतबाबा ने बालक राम नरेश को आश्रम में ही रुक कर पढाई करने के लिए कहा ! बालक रामनरेश अब आश्रम में रह कर महंत बाबा का आश्रम के कामों में हाथ बटाने लगे ! गुरु की कृपा से इनका ध्यान प्रभु की सेवा में बढ़ने लगा और घर के लोगों से मोह समाप्त होने लगा ! इसी दौरान महंत बाबा को श्री हनुमान जी की सूछ्म दिब्य सक्तियों ने स्वप्न में बालक रामनरेश के बारे में संकेत दिए ! वे उनपर विस्वाश करने लगे !

महंत बाबा पुरुसोत्तम दाश जी महाराज ने बालक राम नरेश को दीच्छा दे वैस्नव संस्कार कराये और उनका नाम रामनरेश से बदल कर ''रामदास ''रख दिया, फिर संस्कृत ब्याकरण की शिच्छा दिलाने हेतु संस्कृत महाविद्यालय ग्वालियर भेजा,जहाँ से उन्होंने ज्योतिष ब्याकरणाचार्य के साथ ही एम ए की उपाधि भी प्राप्त की !जब महंत बाबा को विस्वाश हो गया की रामनरेश अब आश्रम की जिम्मेदारी सम्हालने के योग्य हो चुके है तब उन्होंने १९८२ में उनका ग्राम सुपावली आश्रम में अन्य छात्रों के साथ यज्ञोपवीत कराया और १९८३ के विशाल यज्ञ में गुरुबाबा लक्ष्मणदश जी महाराज, श्री श्री १०८ श्री भगीरथ शरण जी के शिस्य बाबा मंगलदाश जी से विचार विमर्श कर १२ अगस्त १९८५ को सम्पूर्ण ग्रामवाशी और संत समाज को बुला कर दंदरौआ आश्रम का कार्य सौप दिया और अधिकारी महंत बनाया ! महंत बाबा ने ब्रह्मचर्य जीवन ब्यतीत कर आश्रम की सेवा का संकल्प कराया !

संत रामदास जी महराज ने १९८५ में संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार हेतु श्री हनुमान मंदिर दंदरौआ धाम में 'श्री 'पुरुसोत्तमदाश संस्कृत महाविद्यालय ''की स्थापना की ! ५०० वर्ष पुराने जीर्णशीर्ण श्री रामजानकी मंदिर का निर्माण कराया !श्री हनुमान मंदिर बनवाया ! आश्रम में संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए अनेक कमरों का निर्माण कराया !श्री हनुमान जी के आश्रम के विस्तार के लिए ५० एकर भूमि ख़रीदी !संस्कृत विद्यालय भवन, छात्रावाश, गौशाला, यज्ञ शाला, भंडार गृह ,सत्संग सभागार ,उद्यान ,तालाब आदि बनवाए जो दिन प्रति दिन विस्तार किये जा रहे है !

महंत रामदाश जी महराज की नित्य दिनचर्या योगभ्याश से सुरु होती है ! ब्रह्मः मुहूर्त में प्रातः ४ बजे जागकर छात्रों से नित्य योग्याभ्याश कराना,गौशाला तथा आश्रम वाशियो की कुसलछेम जानना, और फिर श्रद्धालुओं के ब्यवस्था आदि करना छेत्रिय सत्संगों में सहभागिता करना, श्रीमद भागवत, श्री राम कथा, हवन यज्ञादि कर्मो को संपन्न करना, उनके जीवन के अभिन्न अंग है !

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