ओम दंदरौआ हनुमंते नमः दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान जी का अर्चाविग्रह श्री दंदरौआ धाम के डॉ हनुमान के अर्चाविग्रह में श्री हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है! यह न्रत्य मुद्रा है! उनका श्री मुख भी बानर के स्थान पर बाला के रूप मंप है! उनकी गदा उनके हाथ के बजाय उनके बगल में रखी है! उनका स्वरुप विग्रह वात्सल्य भाव को दर्शाता है! ये बाबा तुलशी की रामचरित मानष की इस चौपाई से मेल कहती है -''एक सखी सिय संग विहाई ,गई रही देखन फुलवाई '' ये प्रसंग बाबा तुलसी ने पुष्प वाटिका के प्रसंग में भगवन श्री राम से माता जानकी को मिलाने के लिए श्री हनुमान जी को भेष बदल कर जानकी की सखियो में सखी चारुबाला के रूप में बताया है! ज्ञात हो जानकी की आठ सखियों में सखी चारुबाला प्रमुख सखी थी! इनने ही सर्व प्रथम माता जानकी का परिचय भगवन राम से कराया! इस प्रकार राम सीता विवाह का मार्ग परास्त हुआ था!दंदरौआ धाम में श्री हनुमान जी का अर्चा विग्रह इसी अवधारणा का द्योतक है! दंदरौआ धाम के अनुयाई संत भी सखी सम्प्रदाय के है ! वे बदन में सफ़ेद धोती धारण करते है और उसी को ओढ़ते है !
दंदरौआ ग्राम ९०० बीघा कृषि एवं ९०० बीघा रकबा की भूमि रखनेवाला छोटा गुर्जर बाहुल्य ग्राम है जो एक समय में राणा धौलपुर (राजस्थान) के आधिपत्य में था ! जब राणा यहाँ से धौलपुर वापस जाने लगे तो गुर्जर छत्रिय वंश के चंदेल राजावों के वंसज जिला ग्वालियर के रौरा ग्राम के निवासी कुंवर अमृत सिंह ने खरीद लिया! जनश्रुति है कि कुंवर अमृत सिंह (मितबाबा ) के आने के समय श्री हनुमान जी का यह अर्चाविग्रह नीम के बृच्छ के अंदर छिपी थी! जब किसी निर्माणकार्य के प्रयोजन से इस नीम को कटाने का प्रयोजन किया गया तो उस दौरान कटाने में ऐसे नाद ध्वनि आई जैसे की कोई अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहा हो ! सावधानी से पेड़ को कटाने पर गोपी वेषधारी श्री हनुमान जी का अर्चाविग्रह प्राप्त हुआ तब सम्मानपूर्वक उन्हें वाही मिटटी के चबूतरे पर स्थापित करवादिया !
श्री दंदरौआ हनुमान जी प्रारंम्भ में खतिया महाबीर जी के नाम से प्रशिद्ध थे! आसपास से ग्रामीण जन यहाँ फोड़ा फुंसी चर्म रोग आदि ब्याधियों से निजात पाने आते थे! मंदिर के महंत श्री पुरुसोत्तमदास जी महराज से श्री हनुमान जी से अर्ज लगवाते थे और उनसे प्रसाद स्वरुप हवन यज्ञ की राख (भभूति ) को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते थे! उनके द्वारा बताये मार्ग ५ या ७ मंगलवार या शनिवार मंदिर आकर श्री हनुमान जी से विनती करते थे और दैवयोग हनुमान जी की शूछम किंतु दिब्य कृप से वो अपनी शारीरिक ब्याधियों से मुक्त हो जाते थे! फिर श्रद्धानुसार दान दे कर मंदिर के निर्माण में अपना योगदान देते थ, कालांतर में लोग इन्हे डॉ हनुमान के नाम से पुकारने लगे! और लोगो द्वारा प्रेमभाव से दिए इस नाम की भावना का सम्मान करते हुए यहाँ से आध्यात्म ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए महामण्डलेस्वर संत राम दास जी महाराज के परम शिस्य श्री कुलदीप सेंगर जी ने ''डॉ हनुमानवाणी''मासिक पत्रिका का संपादन प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया, जो गुरु के आशीर्वाद और श्री हनुमान जी की कृपास्वरूप अनवरत प्रकाशित हो रही है और देश के अनेकों राज्यों में लोकप्रिय हो चुकी है !
दंदरौआ श्री धाम के, डॉ श्री हनुमान । प्रभू राम की कृपा से, करें सदा कल्याण ॥ गुरुबबा के शिस्य थे पुरुसोत्तम महराज । जन्म भूमि को कर गए, तपो भूमि वो आज ॥ शिष्य उन्ही की कृपा के, रामदास महराज । धर्म -ध्वजा ले हाथ में ,निकल पड़े है आज ॥ राग द्वैष मद लोभ से परे सदा ये संत रामदास रख नाम गुरु, विधिवत किया महंत ॥ सरल सहज सु -विचार से ,उनकी कृपा अनंत । महामण्डलेस्वर कहें ,सन्याशी गुरु संत ॥ यहाँ विराजे देवगण,देखें हनुमत रूप । नृत्य करत हनुमान जी ,ऐसो दिब्य स्वरुप ॥ छोटा सा है गांव पर ,बहुत बड़ा है नाम । राजा रंक फ़क़ीर सब, करते इन्हे प्रणाम|| मित बाबा ने क्रय किया ,गुर्जर का ये ग्राम । डॉ श्री हनुमान ने ,तीर्थ कर दिया धाम ॥ मार्ग सरल है यहाँ का ,हो श्रद्धा विश्वाश । सुमिरत ही सिध होत है ,जन,गण,मन,के काम ॥ तन मन
तन मन ब्यापे ब्याधि जो, या निर्धन के योग । डॉ श्री हनुमान का, सुमिरन करे सुयोग ॥ अभिमंत्रित वातावरण, रोग निवारण योग । यज्ञ हवन की भभूति से, ब्याधि मिटायें लोग ॥ जनमुख से सुनते रहे, उनकी कृपा अपार । संकट उनके कवच से, सदा मानता हार ॥ ऐसे अंजनि सुत प्रभू, केसरी के हे ! लाल । कुलदीपक की लेखनी, कर दो आज निहाल ॥ कुलदीपक मई नाम का, प्रभु दीपक तो आप । बाती बन प्रभु मै जलूं, आप हरें संताप ॥ राम नाम मणि दीप के, आप जगावं हार । ऐसो उजियारो करो, जगमग हो संसार ॥